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Wednesday, November 14, 2018

भूकंप एक संकट एवं प्राकृतिक आपदाएं प्रबंधन

सरकारी व सामाजिक स्तर पर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के उपरांत सभी सरकारें तत्काल राहत व सहायता उपलब्ध कराती है भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या के घनत्व अधिक जनहानि अधिक होती है और सच है कि देश में भूकंप लेखन या मापन यंत्र का जाल बिछा दिया जाए आज के भूगर्भ में होने वाली हलचल का ज्ञान होता है जब कभी तीव्र गति के भूकंप आने की संभावना छेत्र विशेष के लोगों को प्रचार माध्यमों के द्वारा से जग कर दिया जाता है

व्यक्तिगत स्तर पर भूकंप आने पर एहसास होने पर व्यक्तिगत स्तर पर तत्काल कुछ नहीं होने चाहिए जैसे सभी घरों से बाहर खुले जगह पर जाने को कह ना बिजली तथा गैस बंद कर देनी चाहिए फालतू जीवो को बंधन मुक्त कर देना चाहिए यह उपाय इसलिए कि जाने संभव है कि तीव्र भूकंप आने से पहले कुछ समय तक हल्के झटके लगते हैं जिससे मानव को बुक कब आने का आभास होता है
संकट की घड़ी में व्यक्ति को एकता का परिचय देना आवश्यक होता है जाति धर्म व संप्रदाय के बंधनों से मुक्त होने मानवीय संवेदना के कारण मुक्त हस्त से तन मन धन से सहायता करनी चाहिए इससे मानवीय संबंध और प्रगाढ़ होते हैं भारत में लोगों ने मिलकर सदैव पीड़ितों की सहायता करने के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किए हैं
भू संकलन
मिट्टी तथा चट्टानों का ढलान पर ऊपर से नीचे की ओर खिसक ने लूटा गने तथा देने की प्रक्रिया को भू संकलन कहते हैं वह संज्ञान यदि बहुत बड़ी परिणाम में होता है तो उसे क्षेत्र में गड़गड़ाहट की आवाज धीरे धीरे शुरू होती है बाद में तेज आवाज के साथ मलबा नीचे की और गिरता है
भू संकलन के कारण
भूस्खलन के लिए किसी एक कारण को उतरता ही नहीं माना जा सकता है अपितु का कारक मिलकर पूछ संकलन जैसी आपदाओं को जन्म देते हैं प्राकृतिक कारण इसमें चट्टानों की संरचना भूमि का ढलान चट्टानों में वर्णन वर्णन वर्षा की मात्रा वनस्पति का अनावरण अधिकार प्रमुख है नवीन मोरदार पर्वत क्षेत्रों में भू संकलन अधिक होते हैं क्योंकि वहां उत्थान की सतत प्रक्रिया के कारण चट्टानों के जोड़ों कमजोर होते रहते हैं वह भी अधिक होता है इससे में वर्षा हो जाए तो वह सनन का काम करती है
मानवीय कारण भू संकलन जैसी प्राकृतिक आपदा को मानव ने नियंत्रित विकास के कारण और अधिक बढ़ा दिया जाए वन विनाश से चट्टानों में बेटियों पर वृक्षों की जड़े अपनी मजबूत पकड़ को छोड़ देती है ते मर्दा अपरदन प्रारंभ हो जाता है यही मर्दा प्रधान धीरे धीरे भू संकलन का रूप ले लेती है सड़कें रेल मार्ग सुरंगों के निर्माण तथा खनन के रूप में मानव भू संकलन को बढ़ावा देते हैं

भू संकलन  प्रर्वत क्षेत्र
भारत में भूस्खलन हिमालय क्षेत्र में अधिक होता है इसके बाद पश्चिमी घाट क्षेत्र में इन क्षेत्रों में जहां नदियों के प्रवाह क्षेत्र में है वहां पर संज्ञान अधिक होता है पूर्वोत्तर भारत और जम्मू कश्मीर क्षेत्र में ध्यान नहीं सड़कों का निर्माण कार्य हुआ है उन क्षेत्रों में भी भू संकलन अधिक होता है समुद्री किनारों पर सागरों के अपरदन के कारण भी भू संकलन होता है नदियों के मार्ग अवरुद्ध कर देता है तो कहीं आग वाला गमन के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है मार्ग अवरुद्ध होने से जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाते हैं मांग व पूर्ति का संतुलन बिगड़ जाता है आबादी वाले क्षेत्रों में होता है तो उसे जन धन दोनों की हानि होती है लोग मकान के मलबे के ढेर में दब जाते हैं उत्तरांचल में भी भारी जन धन की हानि होती रहती

भू संकलन और से नदियों के मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं तथा वहां स्थाई झील बन जाती है यह दिल जब कभी टूटती है तो बाहर से जन धन की हानि होती है केदारनाथ में आई बाढ़ इसका उदाहरण है
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