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Monday, August 6, 2018
संयुक्त राष्ट्र संघ को आज के विश्व का प्रभावशाली
6. झगड़ों का निपटारा शान्तिपूर्ण करेंगे।
Sunday, August 5, 2018
गुरु गोविन्द सिंह का जीवन परिचय
बिस्मार्क का विश्व में योगदान एवं युद्ध
1.डेनमार्क से युद्ध एवं गेस्टाईन सन्धि श्लेसविग हाँल्सटाइन दो डचियों पर डेनमार्क का अधिकार था।हाँल्सटाइन की अधिकांश जनसंख्या र्जमन थी,डेन लोग र्जमनी के एकीकरण का विरोधी थे। लेकिन 10वर्ष वाद ही 1863 ई़ डेनमार्क के शासक फ्रेडरिक ने इन दोनों रियासतों पर अधिकार कर लिया। इस प्रश्न पर बिस्मार्क को राजनीतिक योग्यता और कुटनीति कुशलता दिखाने का अवसर मिल गया। बिस्मार्क इस अवसर का लाभ उठाकर आस्ट्रिया को जर्मनी से बाहर करके जर्मन संघ को समाप्त करना चाहता था।जनवरी 1864ई़ में दोनों डचियों को लेकर प्रशा और आस्ट्रिया के मध्य समझौता हुआ।दोनों डचियों के अधिकार को लेकर 14अगस्त 1865ई़ को गेस्टाइन नामक स्थान पर विलियम और फ्रांसिस जोसफ दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।। 1.आस्ट्रिया प्रशा एवं प्राग की संधि इग्लैण्ड यूरोपीय राज्यों में हस्तक्षेप न करने की नीति पर चल रहा था। 1866ई़ में प्रशा और सार्डिनिया में समझौता हुआ जिसके अनुसार सार्डीनिया आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है तो वेनेशिया उसे दिलवा दिया जायेगा।लेकिन 3जुलाई 1866ई़ को सेडोवा कोनिग्राज का निर्णायक युद्ध हुआ।आस्ट्रिया व प्रशा के मध्य 23अगस्त 1866ई़ को प्राग की सन्धि हुई।।
छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास
पालन उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी कोणदेव तथा जीजाबाई के गुरु समर्थ स्वामी रामदास की देखरेख में हुआ। जिन्होंने उन्हें मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित किया। दादाजी कोंणदेव से उन्होंने सेना और शासन की शिक्षा पायी थी। 12 वर्ष की अल्पायु में शिवाजी ने अपने पिता से पूना की जागीर प्राप्त की। सर्वप्रथम 1646 ई. में 19 वर्ष की आयु में उन्होंने कुछ मावले युवको का एक दल बनाकर पूना के निकट स्थित तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया। 1646 ई. में ही उन्होंने बीजापुर के सुल्तान से रायगढ़, चाकन तथा 1647 ई. में बारामती, इन्द्रपुर, सिंहगढ़ तथा पुरन्दर का दुर्ग भी छीन लिया। 1656 में शिवाजी ने कोंकण में कल्याण और जावली का दुर्ग भी अधिकृत कर लिया। 1659 ई. में अफजल खाँ नामक अपने सेनापति को उनका दमन करने के लिए भेजा। संधिवार्ता के दौरान अफजल खाँ द्वारा धोखा देने पर शिवाजी ने बघनखे से उसका पेट फाड़ डाला। 1663 ई. में दक्कन के मुगल वायसराय शायस्ता खाँ को शिवाजी के दमनार्थ औरंगजेब ने नियुक्त किया, जिसने शिवाजी के केन्द्र स्थल पूना पर अधिकार कर लिया। लेकिन शीघ्र ही शिवाजी ने शायस्ता खाँ के शिविर पर रात्री में आक्रमण किया, जिसमें उसे अपना एक पुत्र और अपने हाथ की तीन उँगलियाँ गवांकर भागना पड़ा। 1664 ई. में शिवाजी ने मुगलों के अधीन सूरत को लूटा। इन सभी गतिविधियों से क्रूद्ध होकर औरंगजेब ने अपने मंत्री आमेर के राजा मिर्जा जयसिंह और दिलेर खान को भेजा। मुगल सेना ने उनके अनेक किले अधिकृत कर लिए। विवश होकर शिवाजी ने जयसिंह के साथ 1665 ई. में संधि कर ली जो पुरंदर की संधि के नाम से विदित है। इस संधि के निम्न प्रावधान थे- 1. शिवाजी ने अपने कुल 35 दुर्गो में से 23 मुगलों को सौंप दिये और मात्र 12 अपने पास रखे, और। 2. शिवाजी के बड़े पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में पाँच हजारी मनसबदार बनाया गया। मई , 1666 ई. में शिवाजी को राजा जयसिंह द्वारा कैद कर लिया गया । लेकिन नवम्बर, 1616 ई में वह गुप्त कैद से भाग गए। 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
भारत में प्रमुख समुद्री पत्तन व बन्दरगाह एवं हवाई पत्तन
पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय
साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से पृथ्वीराज चौहान ने पड़ोसी राज्यों के प्रति दिग्विजय नीति का अनुसरण किया। 1182 ई. में महोबा के चन्देल शासक को पराजित किया। इसके उपरांत पृथ्वीराज चौहान का चालुक्यों से एवं कन्नौज के गहड़वालों से संघर्ष हुआ।
सन् 1178 में गजनी के शासक मोहम्मद गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया । यहां के शासक भीमदेव चालुक्य ने खासहरड़ के मैदान में गौरी को बुरी तरह परास्त किया। गौरी ने सीमा प्रान्त के राज्य सिलायकोट और लाहोर पर अधिकार किया। सन् 1186 से 1191 ई. तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 07 बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध में 08 बार, पृथ्वीराज रासो में 21 बार, प्रबन्ध चिन्तामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी के पराजित होने का उल्लेख है। दोनों के मध्य दो प्रसिद्ध युद्ध हुए। तराइन के प्रथम युद्ध में 1191 ई. में राजपूतों के प्रहार से गौरी की सेना में तबाही मच गई तथा गौरी गोविन्दराय के भाले से घायल हो गया, उसके साथी उसे बचाकर ले गये। पृथ्वीराज चौहान ने गौरी की भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया।
सन् 1192 में गौरी पुनः नये ढंग से तैयारी के साथ तराइन के मैदान में आ डटा। मोहम्मद गौरी ने सन्धिवार्ता का बहाना करके पृथ्वीराज चौहान को भुलावे में रखा। गौरी ने प्रातः काल राजपूत जब अपने नित्यकार्य में व्यस्त थे, तब अचानक आक्रमण कर दिया। गोविन्दराय व अनेक वीर योद्घा युद्ध भूमि में काम आये गौरी ने भागती हुई सेना का पीछा किया व उन्हें घेर लिया। दिल्ली व अजमेर पर तुर्कों का अधिपत्य हो गया। पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है कि पृथ्वीराज चौहान को गजनी ले जाया गया, उन्हें नेत्रहीन कर दिया गया। वहाँ पृथ्वीराज ने अपने शब्द भेदी बाणों से गौरी को मार दिया और उसके बाद स्वयं को समाप्त कर दिया, किन्तु इतिहासकार इस बात पर एकमत नहीं हैं।
पृथ्वीराज चौहान वीर, साहसी एवं विलक्षण प्रतिभा का धनी था। पृथ्वीराज चौहान का विधा एवं साहित्य के प्रति विशेष लगाव था।जयानक, विधापति, बागीश्वर, जनार्दन, चन्दबरदाई आदि उसके दरबार में थे।
गौरी को पर करने के बाद भी उसको पूरी तरह से समाप्त नहीं किया। डॉ. दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को एक सुयोग्य शासक कहा है।