भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसके तहत कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि व्यभिचार यानी एडल्ट्री से जुड़ी धारा 497 असंवैधानिक है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में बताया कि विवाह से बाहर संबंध अपराध नहीं है लेकिन यह पति और पत्नी के बीच तलाक का वाजिब आधार बन सकते हैं। न्यायालय ने बताया कि चाहे महिला हो या पुरुष किसी को भी दूसरे पर अपनी प्रभुता जताने का हक नहीं है। व्यभिचार कानून से मूलभूत अधिकारों का हनन होता है और इसे बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है। भारत की केंद्र सरकार ने इस मामले में व्यभिचार कानून को बरकरार रखने के पक्ष में हलफनामा देकर कहा था कि इस कानून को हटा देने से युवा नाम की संस्था समाप्त हो जाएगी। लेकिन शीर्ष अदालत ने इस बात को नकार दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विवाह जैसी संस्था को चोट पहुंची और पुरुषों में उन्मुक्ततता का भाव पनपेगा। भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले में कहा कि व्यभिचार से शादी खराब नहीं होती बल्कि खराब शादी से व्यभिचार बढ़ता है। अब यह भी माना जा रहा है कि धारा 497 की असंवैधानिक था से एक पुरुष से मुक्त होकर एडल्ट्री करेगा। अदालत ने यह भी बताया कि एडल्ट्री को अपराध मानकर सजा देने का मतलब है दुखी लोगों को और सजा देना। पति और पत्नी का एक दूसरे से विश्वास खंडित होने पर विवाह जैसी संस्था टूट जाती है। लेकिन अदालत के फैसले के भी मायने है। अदालत के अनुसार व्यभिचार तभी बढ़ता है जब पति और पत्नी में प्रेम नहीं रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही धारा 497 असंवैधानिक घोषित कर दी है पर भारतीय समाज एडल्ट्री को खराब नजर से देखता है। भारतीय समाज परंपरागत संस्कृति पर आधारित है, यहां इस प्रकार व्यभिचार करना मान्य नहीं है। भारतीय संस्कृति ,पश्चिम की संस्कृति से अलग है। एडल्ट्री के कारण किसी विवाहित का घर तबाह हो सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि रीवा से बाहर बनाया गया संबंध एक व्यक्तिगत मुद्दा हो सकता है जो तलाक का भी आधार बन सकता है पर यह अपराध नहीं है। कुल मिलाकर अदालत ने निष्कर्ष निकाला है कि मानव के मूलभूत अधिकार सर्वोच्च हैं।
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