गुरु गोविन्द सिंह :-
गुरु गोविन्द सिंह तेगबहादुर के पुत्र थे। ये सिखों के दसवें गुरु और अन्तिम गुरु थे। पंजाब पर औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध करने हेतु उन्होंने शस्त्र और शास्त्र शिक्षा हेतु शिक्षण केंद्रों का विकास किया। इससे सिक्ख सम्प्रदाय सक्षम बना।
लाहौर के सूबेदार को ' नदौण के युद्ध ' में पराजित किया। सिक्खों को सुसंगठित करने ,उनकी कुरीतियां हटाने एवं नवचेतना जागृत करने के उद्देश्य से खालसा पंथ की स्थापना 1699 में की।
बलिदानी पांच भक्तों द्वारा पंज प्यारों ,पाहुल ( चरणामृत ) एवं अमृत छकाणा ( पतासे घुला पानी )की नई प्रथा प्रारम्भ की।
खालसा पंथ के सिक्खों को पांच ' ककार ' अर्थार्त कड़ा ,केश ,कच्छ ,कृपाण , और कंघा रखना आवश्यक था।
ओरंगजेब से युद्ध की आशंका के कारण उन्होंने 1699 में ही आनंदपुर साहिब में एक सैनिक केन्द्र खोल दिया।
गुरु गोविंद सिंह धार्मिक स्वंतत्रता एवं राष्ट्रीय उन्नति का ऊँचा आदर्श रखते हुए सिक्खों के उतकर्ष में लगे रहे। 1705 में मुगलों के आक्रमण के कारण उन्हें आनन्दपुर छोड़ना पड़ा। आनंदपुर में छूटे दोनों पुत्रों जोरावर सिंह व फतेह सिंह को कैद कर सरहिन्द के किले में दीवार में जिन्दा चुनवा दिया गया, परन्तु उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया।
चमकौर के युद्ध में अपने अन्य दो पुत्र अजीत सिंह व जुंझार सिंह शहीद हुए।
खुदराना के संघर्ष में चालीस सिक्खों ने वीरगति प्राप्त की ,उन्हें 'मुक्ता ' एवं स्थान को मुक्तसर कहा गया।
गुरु गोविन्द सिंह आनन्दपुर से अंततः तलवंडी पहुँचे जहाँ एक वर्ष तक उन्होंने साहित्यिक लेखन का कार्य।
ओरंगजेब के निमंत्रण पर वे मिलने जा रहे थे ,तभी ओरंगजेब की मृत्यु का समाचार मिला।
1 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविन्द सिंह परलोक सिधार गए।
गुरु गोविन्द सिंह तेगबहादुर के पुत्र थे। ये सिखों के दसवें गुरु और अन्तिम गुरु थे। पंजाब पर औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध करने हेतु उन्होंने शस्त्र और शास्त्र शिक्षा हेतु शिक्षण केंद्रों का विकास किया। इससे सिक्ख सम्प्रदाय सक्षम बना।
लाहौर के सूबेदार को ' नदौण के युद्ध ' में पराजित किया। सिक्खों को सुसंगठित करने ,उनकी कुरीतियां हटाने एवं नवचेतना जागृत करने के उद्देश्य से खालसा पंथ की स्थापना 1699 में की।
बलिदानी पांच भक्तों द्वारा पंज प्यारों ,पाहुल ( चरणामृत ) एवं अमृत छकाणा ( पतासे घुला पानी )की नई प्रथा प्रारम्भ की।
खालसा पंथ के सिक्खों को पांच ' ककार ' अर्थार्त कड़ा ,केश ,कच्छ ,कृपाण , और कंघा रखना आवश्यक था।
ओरंगजेब से युद्ध की आशंका के कारण उन्होंने 1699 में ही आनंदपुर साहिब में एक सैनिक केन्द्र खोल दिया।
गुरु गोविंद सिंह धार्मिक स्वंतत्रता एवं राष्ट्रीय उन्नति का ऊँचा आदर्श रखते हुए सिक्खों के उतकर्ष में लगे रहे। 1705 में मुगलों के आक्रमण के कारण उन्हें आनन्दपुर छोड़ना पड़ा। आनंदपुर में छूटे दोनों पुत्रों जोरावर सिंह व फतेह सिंह को कैद कर सरहिन्द के किले में दीवार में जिन्दा चुनवा दिया गया, परन्तु उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया।
चमकौर के युद्ध में अपने अन्य दो पुत्र अजीत सिंह व जुंझार सिंह शहीद हुए।
खुदराना के संघर्ष में चालीस सिक्खों ने वीरगति प्राप्त की ,उन्हें 'मुक्ता ' एवं स्थान को मुक्तसर कहा गया।
गुरु गोविन्द सिंह आनन्दपुर से अंततः तलवंडी पहुँचे जहाँ एक वर्ष तक उन्होंने साहित्यिक लेखन का कार्य।
ओरंगजेब के निमंत्रण पर वे मिलने जा रहे थे ,तभी ओरंगजेब की मृत्यु का समाचार मिला।
1 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविन्द सिंह परलोक सिधार गए।
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