सरकार की परिभाषा -
राज्य एक भावात्मक अवधारणा है जो एक अमूर्त एवं अदृश्य संस्था होती है ,इसे मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को ही सरकार कहा जाता है।
सरकार के तीन अंग है ,व्यस्थापिका ,कार्यपालिका और न्यायपालिका।
व्यवस्थापिका :-
सरकार के तीन अंगो में व्यवस्थापिका प्रथम अंग है। भारतीय राज व्यवस्था में व्यवस्थापिका का भी गठन दो स्तर पर हुआ है :-(1) संघीय व्यस्थापिका और (2 ) राज्य व्यस्थापिका। संविधान में संघीय व्यवस्थापिका को संसद नाम दिया गया है।
संविधान के अनुछेद 79 द्वारा व्यवस्था की गयी है कि भारतीय संघ की एक संसद होगी ,जिनके नाम क्रमशः लोकसभा और राजयसभा होंगे। इस प्रकार राष्ट्रपति ,लोकसभा तथा राज्यसभा तीनो का संयुक्त नाम संसद है।
लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन है। इसे लोकप्रिय सदन भी कहते है,क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते है।
मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी थी ,लेकिन समय - समय पर इसमें वृद्धि की गयी। अब गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम ,1987 द्वारा निश्चित किया गया है कि लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती। इनमे अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रो से व अधिकतम 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किये जा सकेंगे एवं राष्ट्रपति आंग्ल - भारतीय वर्ग के 2 सदस्यों का मनोनयन कर सकेंगे।
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से और वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। भारत में अब 18 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति को वयस्क माना गया है। लोकसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्र एकल - सदस्यीय रखे गए है।
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति भारत का नागरिक ,उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक हो ,भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अंतर्गत वह कोई लाभ पद पर कार्यरत नहीं हो और वह किसी न्यायालय द्वारा पागल न ठहराया गया हो तथा दीवालिया न हो।
लोकसभा का कार्यकाल 5 है। प्रधानमंत्री के परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा को समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है ,ऐसा अब तक 9 बार किया गया है।
लोकसभा और राजयसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा ही बुलाये और स्थगित किये जाते है और इस संबंध में नियम केवल यह है कि लोकसभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अंतर् होना चाहिए।
लोकसभा के पदाधिकारी :-
संविधान के अनुछेद 93 के अनुसार लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन करेगी। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को उनके पदों पर से हटाया भी जा सकता है यदि लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से आशय का प्रस्ताव पास हो जाये ,परन्तु इस प्रकार का कोई प्रस्ताव लोकसभा में तभी पेश हो सकेगा जबकि इस प्रकार के प्रस्ताव को पेश करने के लिए कम से कम 14 दिन की पूर्व सूचना दी गयीं हो। संविधान के अनुसार अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को संसद द्वारा दी गयी हो। संविधान के अनुसार अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को संसद द्वारा निर्धारित वेतन तथा भत्ते प्राप्त होंगे।
अध्यक्ष के कार्य और शक्तिया :-
1 . अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा की सभी बैठको की अध्यक्षता की जाती है और अध्यक्ष होने के नाते उसके द्वारा सदन में शांति - व्यवस्था और अनुसाशन बनाये रखने का कार्य किया जाता है।
2. लोकसभा का समस्त कार्यक्रम और कार्यवाही अध्यक्ष के द्वारा ही निश्चित की जाती है। वह सदन के नेता के परामर्श से विभिन विषयों के संबंध में वाद -विवाद का समय निश्चित करता है।
3. वह सदन की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता हैं। प्रवर समितियों (Select Committes )के सभापतियों को वही नियुक्त करता है और इन समितियों के द्वारा उसके निर्देशन में ही कार्य किया जाता है।
4. अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं।
5. संसद और राष्ट्रपति के बीच सारा पत्र व्यवहार उसके ही द्वारा होता है।
0 comments:
Post a Comment