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Saturday, September 29, 2018

मारवाड़ के गाँधी नाथूराम मिर्धा का जीवन परिचय

नाथूराम मिर्धा ,राजस्थान  में यह नाम कोई अनजाना नहीं है। 

नाथूराम मिर्धा एक राजनीतिज्ञ ,समाज- सेवक और स्वंतत्रता सेनानी थे। मारवाड़ के किसानों के दिलों पर नाथूराम मिर्धा ने वर्षों तक राज किया है।
उनका जन्म 20 अक्टूबर 1921 को राजस्थान  नागौर जिले के कुचेरा गांव में हुआ था। उनके पिता का थानाराम मिर्धा था।
उनकी पत्नी का नाम केशर देवी था जिनके 2 पुत्र और 2 पुत्रियां थी। जोधपुर के दरबार हाई स्कूल से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की।  1944 में लखनऊ विश्विद्यालय से वकालत (एलएलबी )की डिग्री भी ली।
नाथूराम मिर्धा एक ग्रामीण परिवेश में पले - बढ़े थे ,इसलिए किसानों में उनका झुकाव पहले से ही था।
वकालत के दो साल बाद उन्होंने किसान सभा नाम की एक किसान इंस्टिट्यूट में सेकेटरी पद पर ज्वाइन किया और बाद में जोधपुर जिले के रेवेन्यू मंत्री बना दिए गए।
15 अगस्त 1947 के बाद किसान सभा एक प्रसिद्ध मिनिस्ट्री बन चुकी थी और नाथूराम जी उसके जनरल सेकेर्ट्री।
उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1952 में मेड़ता सिटी से लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की। राजस्थान सरकार में उन्होंने 1952 से लेकर 1967 और 1984 से लेकर 1989 तक का समय बिताया और कई मंत्री पदों पर काम किया। अपने कार्यकाल में नाथूराम मिर्धा राजस्थान के पहले वित मंत्री भी रह चुके है।

मिर्धा अब तक राजस्थान में कृषि और उद्योग के रहनुमा के तौर पर जाना जाने लगे थे।  1972 तक उन्होंने 6 बार राज्यसभा की सदस्यता भी ग्रहण की थी। 1979 - 80 और 1989 -90 में मिर्धा यूनियन काउंसलिंग मिनिस्टर भी रहे।
नेशनल एग्रीकल्चर प्राइसेस कमीशन के चेयरमैन के तौर पर भी उन्होंने काम किया है ,इस पद पर रहते हुए उन्होंने किसानो के लिए कई योजनाओं का निर्माण किया था। मिर्धा ने 10 साल तक महाराजा सुरजमल इंस्टिट्यूट ,नई दिल्ली में बतौर चेयरमैन पदभार संभाला।
1975 में इंदिरा गाँधी से कुछ मतभेदों के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ लोकदल पार्टी का दामन थाम लिया जिसके मुखिया चौधरी चरण सिंह थे। यहां से उन्होंने 1971 और 1977 के चुनावों में भारी मतों से जीत हासिल की। अपनी मेहनत व लगन के दम पर उन्होंने लोकदल पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्धि दिलाई।  1988 में उन्हें लोकदल पार्टी का राज्य अध्यक्ष बनाया गया।

1991 में उन्होंने 14 साल बाद फिर से कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया और 1991 और 1996 में चुनाव जीता। 5 साल तक उन्होंने कांग्रेस -1 पार्लियामेंट के उपाध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभाला। 1996 में उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता।
उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि उन्होंने बीजेपी के एच कुमावत को एक लाख साठ हजार वोटों से सीधी पटखनी दी।  इसी पद  पर रहते हुए 30 अगस्त 1996 में  75 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गयी। इसी सीट पर उपचुनावों में बीजेपी ने उनके पुत्र भानू प्रकाश मिर्धा को टिकट देकर चुनाव लड़वाया और सीट अपने नाम कर  ली।
  

नाथूराम मिर्धा ने राज्य सिंचाई मंत्री ,फाइनेंस ,फूड एंड सिविल सप्लायर्स मंत्री के साथ पार्लियामेंट कमेटी के चेयरमैन पद पर कार्यभार संभाला था। उन्होंने किसानों ,अनुसूचित जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के कारण सेवा की। पेशे से एक वकील ,उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों और छात्रावासों की स्थापना करके शिक्षा के क्षेत्र में भी सेवा की।
आज नाथूराम मिर्धा हमारे बीच नहीं है लेकिन हमेशा ही किसानों के मसीहा के रूप में जाने जाते है और आगे भी जाने जायेंगे।
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