किसान केसरी स्व. बलदेव राम जी मिर्धा राजस्थान में किसान जागृति के प्रेरणा श्रोत माने गए है।
राजस्थान में जोधपुर जिला की स्थापना से पूर्व सन 1456 से पूर्व यहा जनपद और पंचो द्वारा समाज की यवस्था होती थी।
पशु पालन और कृषि मुख्य धंधा था। ये लोग सिंधु नदी के किनारे से 2030 ई. के बाद आये। जोधा जब आये तो बार -बार जोधपुर से पांच किमी पूर्व तत्कालीन सता के केंद्र पर हमला करते और आदमी आदमी और घोड़े मरवा कर भाग जाते ऐसे में एक बार किसी किसान के घर उतरे और भूख से व्याकुल होने के कारण सेंगटी (खीचड़ा )के बीच रखे घी में हाथ जीमने के लिये डाला तो हाथ जल गया। घर की स्वामिनी जाटनी ने कहा -थू तो जोधा री ताई नीरो गंवार पूछ्यो जोधा किया ? तो कहियो कि बो सीधो राजधानी पर हमलो कर - मिनख अर गोड़ा करवावे है। धीरे - धीरे सू खींच खावै तो हाथ न बळे और किनारे रा गांव काबू करे तो राज भी हाथ हावे। सीख मानकर जोधा ने राज्य स्थापित किया परन्तु 509 साल तक किसान राजा और जमींदारी से पीड़ित रहे। श्री बलदेव राम जी मिर्धा ने पुलिस सेवा में रहते हुए किसानो के दर्द को समझा और उन्हें संगठित किया।
किसान छात्रावास बनाकर शिक्षा प्रारम्भ की। ओसर - मोसर बंद करवाने की भरपूर कोशिश की। तम्बाकू ,बीड़ी ,खारा -पानी ,शराब बंद करवाने का अभियान चलाया। सीकर के किसानों को जागृति की प्रेरणा दी और पंजाब के मंत्री श्री छोटूराम जी के साथ मिलकर समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाकर समजौता करवाया की हाथी की सवारी पर पंडित जी और रामायण को बिठाया जाये। वो कालखंड 1934 का ऐसा था कि : नोटों की दुनिया में ,सोटो का राज था। वतन हमारा था ,उनका ताज था। चमन हमारा था ,उनका राज था। जुल्म - सितम। करते,उनको नाज था।
ऐसे अत्याचारी युग में किसान ,मजदूर ,गरीब और दीन - हीन को ,समाज सेवी मिर्धाजी ने सहारा दिया ,प्रेरित किया अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए बलदेवराम जी पुलिस में डी.आई.जी.थे। वे तामसिक प्रवर्ति के सामंतो को भी समजाकर सत की राह पर चलने को प्रेरित करते थे। वक्त आया कि ,जोते उसकी जमीन नारा सफल हुआ ,कुबुद्धि बदल गये ,ऐसी हुई जीत रे ,सुराजी हवाऐं बनी ,विश्व्यापी रीत रे।
जमींदार 24 से 33 प्रतिशत खेत का धान,हासल या हिस्से का लेते थे। किसानो को निडर ,निर्भीक और अधिकारों के लिए जुझारू होना स्व.श्री बलदेव राम जी मिर्धा ने सिखाया कृषकों ने हासल की जगह बिगोड़ी देना प्रारंभ कर दिया।
उनका जन्म 17 जनवरी १८८९ को कुचेरा में हुआ और नागौर में 24 वर्ष की आयु में थानेदार बने ,34 वर्ष की आयु में पुलिस इंस्पेक्टर और 36 वर्ष की आयु में एसपी ,जोधपुर और सन 1934 के प्रारम्भ में डिप्टी - इंस्पेक्टर -जनरल(DIG ) ,जोधपुर में पदोन्नत हुए।
राष्ट्रभाव के कारण अापने स्वेछा से सेवा निवृति 1946 में ली और पूर्ण रूप से समाज सेवा में सलंग्न हो गए। डाबड़ा कांड में हिंसा का दौर चला जहां जागीरदारों ने कृषको को गोलिंयो से भूना। निडर मिर्धा जी सामना करने की प्रेरणा दी और सामन्ती जुल्मों से किसानों को उभारा।
समाज की सेवा करते हुए लाडनूं में 2 अगस्त 1953 को स्वर्गवास हो गया।
उनके सुपुत्र श्री रामनिवास जी मिर्धा भी चिंतनशील राजनेता थे और उनके पौत्र श्री हरेंद्र जी मिर्धा भूतपुर्व मंत्री है और राजस्थान के भावी नेतृत्व के सबल कर्णधार है।
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