बीकानेर के राजा राय सिंह का इतिहास :-
रायसिंह कल्याणमल का बड़ा पुत्र था। उसका जन्म 20 जुलाई 1541 को हुआ। 1570 में लगे नागौर दरबार यह अकबर की शाही सेना में शामिल हो गया और शीघ्र ही अकबर का विश्वासपात्र बन गया।अकबर ने रायसिंह को सर्वप्रथम 1572 में जोधपुर का अधिकारी बनाया। रायसिंह के पिता कल्याणमल की 25 सितम्बर 1574 को मृत्यु होने के बाद रायसिंह बीकानेर का शासक बना। रायसिंह जब जोधपुर की व्यवस्था संभाल रहा था ,तभी इब्राहिम मिर्जा ने नागौर में विद्रोह कर दिया। रायसिंह ने कठौली नामक गांव में उसका दमन किया।
सिरोही के देवड़ा सुरताण व बीजा के मध्य अनबन हो गयी ,तब रायसिंह ने सिरोही पर आक्रमण करके बीजा को राज्य से बाहर निकाल दिया और आधा सिरोही मुगलों के अधीन कर मेवाड़ से नाराज होकर आये महाराणा प्रताप के सौतेले भाई जगमाल को दे दिया। सुरताण ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनाओं के मध्य 1583 में "दत्ताणी नामक स्थान"पर युद्ध हुआ। दत्ताणी के युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो गयी और सुरताण ने सिरोही पर वापस अपना अधिकार कर लिया। अकबर ने रायसिंह से प्रसन्न होकर 1593 में उसे जूनागढ़ प्रदेश दिया। उसने उसे 1604 में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर व "राय"की उपाधि दी। रायसिंह ने 1589 -94 के मध्य अपने प्रधानमंत्री करमचंद की देखरेख में जूनागढ़ (बीकानेर )का निर्माण करवाया तथा वहां एक प्रशस्ति लगवाई जिसे "रायसिंह प्रशस्ति "के नाम से जाना जाता है। रायसिंह साहित्यकार भी था ,उसने रायसिंह महोत्स्व ,वैध्य्क वंशावली ,ज्योतिष रत्नमाला ,ज्योतिष ग्रंथों की भाषा पर बाल बोधिनी नामक टीका लिखी। 'करमचंद्रवंशाोतकीर्तनक काव्य 'ग्रन्थ में रायसिंह को "राजेंद्र "पुकारा गया है।
रायसिंह के शासन काल में बीकानेर में अकाल पड़ा। रायसिंह ने जगह -जगह 'सद्रावत'खोले एवं पशुओं के लिए चारे -पानी की व्यवस्था की। बीकानेरी चित्रकला की शुरुआत रायसिंह के शासन काल में मानी जाती है। रायसिंह की मृत्यु दक्षिण भारत में एक स्थान बुरहानपुर में 21 जनवरी 1612 को हुई। रायसिंह ने दक्षिण भारत में एक स्थान पर रेगिस्थान के फोग नामक झाड़ी को देखकर उससे वह लिपट गया तथा कहा कि -
"तू सै देशी रूखंडा ,म्है परदेशी लोग।
म्हाने अकबर तेड़ियाँ ,क्यों तूँ आयो फोग ।।
अर्थात तू देशी पौधा है ,मै परदेशी व्यक्ति हूँ। मुझे तो अकबर ने यहां जबरदस्ती भेजा है ,पर हे !फोग तू यहां क्यूँ आया है ?
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