अमरसिंह राठौड़ जोधपुर का इतिहास :-
जोधपुर के महाराजा गजसिंह के तीन पुत्र थे बड़ा अमरसिंह ,दूसरा जसवंतसिंह ,व तीसरा अचल सिंह जो कि बचपन में ही मर गया था। अमरसिंह राठौड़ पराक्रमी व निडर था। उसके पास स्वभाव के कई राजपूत युवक जमा हो गए। गजसिंह ने अनारा नामक पासवान के बहकावे में आकर अमरसिंह को राज्याधिकार से कर देश से निकाल दिया। अमरसिंह राठौड़ मुगल बादशाह की सेवा में जा पहुंचा। जहां उसकी बहादुरी से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे 'राव'की उपाधि दी।
एक बार अमरसिंह राठौड़ 15 दिनों तक मुगल दरबार से अनुपस्थित रहा। बादशाह शाहजहाँ ने उससे उसकी अनुपस्थिति का कारण पुछा तो अमर ने स्वाभिमान के साथ उत्तर दिया की ,"मै केवल शिकार के लिए गया था अतः दरबार में नहीं आ सका। जहां तक जुरमाना अदा करने की बात है मेरी तलवार ही मेरी सम्पति है।" जुर्माने को वसूल करने के लिए बख्शी सलावत खां को उसके पास भेजा। अमरसिंह ने जुर्माना देने से इंकार कर दिया। बादशाह ने अमरसिंह तुरंत हाजिर होने का आदेश भिजवाया। अमरसिंह राठौड़ ने आदेश का पालन किया और दीवाने खास में पहुंचकर बादशाह का अभिवादन किया। वहां पहुंचते ही दरबार में उपस्थित सलावत खां ने गवाँर कहा। यह शब्द अमरसिंह सुन नहीं सका और सलावत खां पर आक्रमण कर उसके सीने में कटार उतार दी। इसके बाद अमरसिंह ने शाहजहाँ पर आक्रमण कर दिया ,किन्तु शाहजहाँ बच गया। भयभीत बादशाह जनाना महलों में भाग गया। अमरसिंह के साले अर्जुन गौड़ ने इनाम के लालच में धोखे से अमरसिंह पर आक्रमण कर उसे मार दिया। यह सुनकर अमरसिंह के सरदारों और सैनिकों के खून में उबाल आ गया और उन्होंने उसी समय दिल्ली जाकर शाहजहाँ के निवास स्थान लाल किले में बुखारा द्धार से प्रवेश किया। राठौड़ों की संख्या मुगलों की सेना के सामने नाममात्र थी इसलिये सभी राठौड़ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। लाल किले के बुखारा द्वार को उसी दिन ईंटों से बंद करवा दिया गया और उसी दिन से वह द्वार 'अमरसिंह का फाटक' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह फाटक अनेक वर्षों तक बन्द रहा परन्तु 1809 में जॉर्ज स्टील नामक अंग्रेज अफसर के आदेश से उसे खोला गया।
0 comments:
Post a Comment