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Wednesday, October 3, 2018

छत्रपति शिवाजी की जीवनी

छत्रपति शिवाजी का  जीवन परिचय :-
                                                         छत्रपति शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल 1627 को शिवनेर के दुर्ग में हुआ। वे शाहजी भोंसले की प्रथम पत्नी जीजाबाई के पुत्र थे। शाहजी बीजापुर के एक सामन्त थे ,जिन्होंने तुकाबाई मोहिते नामक एक अन्य स्त्री से विवाह कर लिया था। इसी कारन जीजाबाई उनसे अलग रहती थी। बालक शिवाजी का लालन-पालन उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी कोणदेव तथा जीजाबाई के गुरु समर्थ स्वामी रामदास की देखरेख में हुआ। जिन्होंने उन्हें मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित किया। दादाजी कोणदेव से उन्होंने सेना और शासन की शिक्षा पायी थी। 12 वर्ष की अल्पायु में शिवाजी ने अपने पिता से पूना की जागीर प्राप्त की। सर्वप्रथम 1646 में 19 वर्ष की  आयु में उन्होंने कुछ मावले युवकों का एक दल बनाकर पूना के निकट स्थित तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया। 1646 में ही उन्होंने बीजापुर के सुल्तान से रायगढ़ ,चाकन तथा 1647 में बारामती ,इन्द्रपुर ,सिंहगढ़ तथा पुरन्दर का दुर्ग भी छीन लिया। 1656 में शिवाजी ने कोंकण में कल्याण और जावली का दुर्ग भी अधिकृत कर लिया। 1656 में ही उन्होंने अपनी राजधानी 'रायगढ़' को बनाई। शिवाजी के साम्राज्य विस्तार की नीति से रूष्ट होकर बीजापुर के सुल्तान ने 1659 में अफजल खां नामक अपने सेनापति को उनका दमन करने के लिए भेजा। संधिवार्ता के दौरान अफजल खां द्वारा धोखा देने पर शिवाजी ने बघनखे से उसका पेट फाड् डाला। 1663 में दक्क्न के मुगल वायसराय शायस्ता खां को शिवाजी के दमनार्थ ओरंगजेब ने नियुक्त किया ,जिसने शिवाजी के  केंद्र स्थल पूना पर अधिकार कर लिया।  लेकिन शीघ्र ही शिवाजी ने शायस्ता खां के शिविर पर रात्रि में आक्रमण किया ,जिसमे उसे अपना एक पुत्र और अपने हाथ की तीन उँगलियाँ गँवाकर भागना पड़ा। 1664 में शिवाजी ने मुगलों के अधीन सूरत को लूटा। इन सभी गतिविधियों से क्रुद्ध होकर ओरंगजेब ने अपने मंत्री आमेर के राजा मिर्जा जयसिंह और दिलेर खान को भेजा। मुगल सेना ने उनके किले अधिकृत कर लिए। विवश होकर शिवाजी ने जयसिंह के साथ 1665 में  संधि कर ली जो पुरन्दर की संधि के नाम से विदित है। इस संधि के निम्न प्रावधान थे -
                               1 . शिवाजी ने अपने कुल 35 दुर्गों में से 23 मुगलों को सौंप दिए और मात्र 12 अपने पास रखे ,और
2 . शिवाजी के बड़े पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में पाँच हजारी मनसबदार बनाया गया।
   
     राजा जयसिंह द्वारा शिवाजी को आगरा स्थित मुगल दरबार में उपस्थित होने के लिए भी आश्वस्त किया गया। जयसिंह ने उनसे कहा कि उन्हें दक्षिण के मुगल सूबों का सूबेदार बना दिया जायेगा। मई ,1666 में शिवाजी शाही दरबार में उपस्थित हुए ,जहां उनके साथ तृतीय श्रेणी के मनसबदारों जैसा व्यवहार किया गया और उन्हें नजरबंद भी कर दिया गया। लेकिन नवंबर 1666 में वे अपने पुत्र शम्भाजी के साथ गुप्त रूप से कैद से ंनिकल भागे और सुरक्षित अपने घर पहुंच गए। अगले ही वर्ष ओरंगजेब ने शिवाजी को राजा की उपाधि और बरार की जागीर प्रदान की। दो वर्ष तक शिवाजी ने शान्ति बनाये रखी। लेकिन 1670 में उन्होंने विद्रोह कर मुगलों की अधीनता में चले जाने वाले अपने सभी किलों पर कब्जा कर लिया। खानदेश के कुछ भू -भागों में स्थानीय मुगल पदाधिकारियों को सुरक्षा वचन देकर चौथ (आय का चौथा हिस्सा )वसूलने का लिखित समजौता भी उन्होंने किया। 1670 में उन्होंने सूरत को दोबारा लूटा। 1674 में 'रायगढ़' के दुर्ग में शिवाजी ने महाराष्ट्र के स्वतंत्र शासक के रूप में अपना राज्याभिषेक कराया ,इस अवसर पर उन्हेोंने 'छत्रपति'की उपाधि धारण की। 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गयी। इस समय उनका मराठा राज्य बेलगाँव से तुंगभद्रा नदी के तट     तक समस्त पश्चिमी कर्नाटक में विस्तृत था। इस प्रकार मुगल शक्ति ,बीजापुर के सुल्तान ,गोवा के पुर्तगालियों और जंजीरा स्थित अबीसीनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद शिवाजी ने दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। 
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