भारत कृषि प्रधान देश है ,यहां पर कुल जनसंख्या का 54. 6 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आश्रित है तथा देश के सकल घरेलू उत्पात का 17. 4 प्रतिशत भाग कृषि से प्राप्त होता है। भारत में कृषि कार्य जीवन निर्वहन के लिए किया जाता है जिसमे कृषक अपनी परम्परागत तकनीक के दवारा कृषि भूमि पर उदर पूर्ती हेतु खाद्दान फसलों को उगाता है ,जिसमे अतिरिक्त भाग को बेच कर अन्य आवश्यक सामग्री प्राप्त करता है। भारत में कृषि कार्य लगभग सात हजार वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो तथा सरस्वती सिंधु सभ्यता से होता आ रहा है। इस कृषि कार्य पर समय काल तथा परिस्थिति के प्रभाव के कारण इसके तथा विविध आयामों में परिवर्तन होता रहा है। इस कारण से भारतीय कृषि के विविध स्वरूप है।
*भारतीय कृषि के विविध रूप
1 . भारतीय कृषि के रितुओं के आधार पर रूप :-
१ खरीफ फसल
२ रबी फसल
३ जायद फसल
अ. खरीफ फसल :-
ऐसी फसलें जो जून - जुलाई में बोई जाती है तथा अक्टूबर - नवंबर में काटी जाती है। ऐसी फसलों में चावल ,मक्का ,बाजरा ,मूंगफली ,मूंग ,उड़द , गन्ना ,सोयाबीन आदि प्रमुख है। ये फसलें मानसून से होने वाली वर्षा पर निर्भर होती है ,परन्तु वर्तमान में कुछ भागों पर सिंचाई के द्वारा भी बुवाई की जाती है।
ब. रबी फसल :-
ऐसी फसलें जो अक्टूबर -नवंबर में बोई जाती है तथा मार्च - अप्रैल में काटी जाती है। ऐसी फसलों में गेहूं ,चना ,जौ ,तिलहन (अलसी ,सरसों ),जीरा ,धनिया ,इसबगोल ,की फसलें प्रमुख है। इसमें अधिकांश फसलें सिचाई के विविध स्रोतों से उत्पादित होती है।
स. जायद फसल :-
इसमें मुख्य रूप से हरी सब्जियां एवं चारे की फसलें होती है जिसे फरवरी - अप्रैल में बोई जाती है ,जून -जुलाई में काटी जाती है। इसमें तरबूज ,लौकी ,ककड़ी खीरा आदि की फसलें ली जाती है।
2 . भारत में कृषि विधियों के उपयोग के आधार पर रूप :-
अ. खाद्दान्न फसलें -
ऐसी फसलें जिनका उपयोग खाने या भोजन के रूप में किया जाता हो , जैसे चावल ,गेंहू ,मक्का ,ज्वार,बाजरा ,जौ व दालें इत्यादि प्रमुख है।
ब. व्यावसायिक या औद्योगिक फसलें -
ऐसी फसलें जिनका उपयोग व्यावसायिक कार्यों के लिए या उद्योग में कच्चे मॉल के रूप में किया जाता हो इन्हें मुद्रदायिनी फसलें कहा जाता है ,इसमें गन्ना ,कपास ,जूट ,तम्बाकू तथा तिलहन आदि फसलें सम्मिलित की जाती है।
स. बागानी फसलें -
ऐसी फसलें जिसे विशाल बागानों में उत्पादित की जाती हो तथा पेय व औद्योगिक कार्यों में उपयोग में ली जाती हो जैसे चाय ,रबड़ ,सिनकोना ,गर्म मसाले इत्यादि।
द. उद्यान फसलें -
इसमें फल व सब्जियों को सम्मिलित किया जाता है।
*भारतीय अर्थव्यस्था में कृषि का योगदान :-
1 . रोजगार का साधन -
कृषि भारत में 55. 6 प्रतिशत जनसंख्या का प्रत्यक्ष रूप से रोजगार का साधन है। कृषि सहायक कारकों जैसे पशुपालन ,मत्स्यपालन व वानिकी रोजगार के साथ उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करती है जो कि अप्रत्यक्ष आजीविका स्रोत है।
2 . सकल घरेलू उत्पाद में सहायक :-
भारत में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि व सहायक कारकों का योगदान अधिक रहा है। 1951 में जो योगदान 1993 -94 की कीमतों पर 55.11 प्रतिशत था वह 1990 में 44.26 प्रतिशत रह गया। वर्ष 2007 -08 में 1999 -2000 की कीमतों पर 17.8 प्रतिशत तथा 2015 -16 में 2011 -12 की कीमतों पर 15. 35 प्रतिशत रह गया। इस कमी का कारण औद्यौगिक विकास में द्वितीय व तृतीय क्षेत्रों में उतरोत्तर वृद्धि रहा है।
3 . विदेशी व्यापार में योगदान :-
भारत वैश्विक कृषि उत्पादों के निर्यात में 2.07 प्रतिशत योगदान रखता है। भारत कृषि उत्पादों के निर्यात की दृष्टि से विश्व का दसवां बड़ा देश है। यह भारत के कुल निर्यात का चौथा बड़ा सेक्टर है। निर्यात के रूप में चाय ,चीनी ,तिलहन ,तम्बाकू ,मसाले ,ताजे फल व बासमती चावल आदि प्रमुख उत्पाद है। अन्य कृषि सामग्री जैसे जूट ,कपड़े ,मुर्गीपालन आदि उत्पाद भी इसमें सम्मिलित है ,जबकि आयात में खाद्यान्न सम्मिलित किया जाता है।
4. उद्दोगों के लिये कच्चे माल की आपूर्ति -
भारतीय कृषि आधारित उद्योग जैसे कपड़ा उद्योग ,चीनी उद्योग ,वनस्पति तेल उद्योग ,जूट उद्योग ,रबड़ उद्योग तथा मसाला उद्योग को कच्चा माल कृषि फसलों से मिलता है।
5. औद्योगिक उत्पादों के लिए बाजार :-
भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जो कि कृषि पर निर्भर है। कृषि से संबंधित यंत्रों से जैसे ट्रेक्टर ,जुताई उपकरण तथा खाद व कीटनाशकों के लिए यह क्षेत्र बाजार उपलब्ध कराता है।
भारतीय कृषि का आंकलन करे तो हम यह पांयेंगे कि कृषि जहां भारत की अर्तव्यवस्था का आधार है वहीं रोजगार तथा आय सृजन का बड़ा साधन है ,परन्तु कृषि पर मानसून की निर्भरता तथा उसकी अनिश्चितता व अनियमितता तथा बाढ़ व सूखे की विभीषिका के कारण उत्पादन कम होता है तो हमें कृषि के प्राचीन स्वरूप व उत्पादन का जीवन निर्वाहन प्रयोजन में परिवर्तन करना होगा साथ ही कृषकों में अशिक्षा ,गरीबी को दूर करना होगा ,तभी भातीय कृषि व कृषकों का विकास होगा।
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